Saturday, October 26, 2013

आम आदमी

आज कुछ सुनता  हूँ ,
कुछ  लिखता हूँ ,
कुछ कहने का अधिकार मिला ,
उन अधिकारों से चीखता हूँ।

सुनता है  कौन मेरी ,
जरुरत बस देखते है लोग।
सब चल रहा है, चलते रहने दो,
आँखे खुली है, पर है न जागने का रोग।

जेब पर डांका जब  पड़े,
खिज़ कर, खरी खोटी से काम चलाते है,
नून प्याज़ महंगा सब ,
बस रोटी से काम चलते है।

बड़े बड़ो और धनियों की ,
सब सुने हज़ार बार है।
पाँच में बदलो या ना बदलो ,
यही बस मितला है, आम आदमी की सरकार है।

पाँच साल का पर्व जब आया ,
मेला लगा था , वादे मिल रहे थे वोट से,
कभी गुमसुम कभी जयजयकार लगा,
मजमा देख सोचता, सरकार चल रही नोट से।

सोचता हूँ , यही नियम है, चलता है,
थोडा समय दे मै  भी वहा से चलता रहा।
"आम  आदमी " था और हूँ,
पर नेताओ के भाषण  में देश बदलता रहा।