Thursday, May 9, 2013

थोड़ी चर्चा

एक चुनाव के रिजल्ट आया, जिस पार्टी का बहुमत हुआ, वो ऐसे खुश हो रहे है जैसे इनके सरे पाप धुल गए हो! जिनकी हार हुई, इनके भी जुबान तलवार बन नैतिकता और लोकतंत्र कि दुहाई दे रहे है! इस चुनाव को लोग भ्रष्टाचार के तराजू पर तौल के देख रहे थे, और परिणाम पहले ही घोषित कर चुके थे, लेकिन असली परिणाम कुछ और हुआ!
    समर्थक लोग तरह-तरह के बयान देकर दिल को तस्सली दे रही! भ्रष्टाचार पर चार लाइन लोगो को बोलना और सुन्ना अच्छा लगता है, और वही दूसरा वर्ग है जिनको पकाऊ लगता है! हालत ये है कि, 65 साल से जो  कछुआ रूपी विकाश और घोटाले हम सुन रहे है, लोग सोचते है, किसी को भी चुन, वो लुट कर  ही ले जायेगा! बस मुखौटा थोडा अच्छा रहेगा और "ब्रांडेड" रहेगा तो कुछ और ही बात है!
 एक वक्ता समाचार के हीरो को बता रहे थे, सामाजिक नैतिकता का पतन हो गया है, इसीलिए ऐसा हो रहा है! स्कूल में दाखिला, कॉलेज में डोनेशन, सरकारी नौकरी में घूश देकर जो लोग जी रहे, अगर ऐसे हालत पैदा न किया जाये, तो क्या ये समस्या हो सकती है?
सुरुआत देखते है थोडा,  कर्मचारी १०० में से १० चुराता है, उसका साहब १००० में से १००, छोटे नेता जी १०००० में से १०००,  बड़े नेता १००००० में से १००००,  सिलसिला बढ़ता जाता है, जो इस रूपये को बाँट रहा होता है, १०० करोड़ मेरे से १० करोड़ चुराता है! कर्मचारी जोर जोर से चिल्लाते हुए बोलता है, १० करोड़ कर घोटाला !!!
ये काम हर वर्ग का होता है और चुनाव आने पर इसका जमकर इस्तेमाल करते है, छोटे लोग मुद्दे को तो बड़े लोग नोट का!  जो इसमें सामिल नहीं होते वो या तो इन्हें कोसते है या फिर आँख मूंदकर देश को गाली देकर निकल लेते है! गुस्से का इस्तेमाल भी अपने ही घरवालो पर करते है, और फिर अपने "क्रिकेट के फेवरेट टीम" की तरह अगली पारी का इन्तेजार करती, सत्ता पक्ष को कोशती हुई ५ साल गुजारती है!
एक बात ये भूल जाते है कि हम जिसे समर्थन कर रहे है उसे सुधार दे! अपनी गलती छुपाने के लिए दुसरो कि गलतियों का ढाल बना लेता है! बस.... एक नया खेल सुरु होता है, तू तू मै मै का.... अपनी पार्टी जिंदाबाद, तेरी पार्टी मुर्दाबाद! हर ५ साल में यही होता है, आगे भी होगा! जय हिन्द !

Wednesday, May 1, 2013

हर रोज गुनाहों का  परत दर परत खुलता है!
फिर भी, भाषणों से इनके, रोज दाग धुलता है!

रोटी रोटी चिल्लाता जो, उनको क्या पता,
पेट भरा इन्सान हर सुबह, पुराने राग भूलता है !

हक़ की खातिर उतरता, जो आदमी, सडको पर,
कभी बर्षा की धार, कभी सूरज का आग भूलता है !


हर गली में मिल जाते, बड़े कागज पर, दीवारों से लगे,
चमचई की आदत है ,सड़क से गुजरने वाला इन्हें, "जनाब" बोलता है!

कभी हालत देखना "सूबे" और इनके "घर" की,
इन्हें चुनने वाला , देश को ही  ख़राब बोलता है !


शातिर चोर है, जानते है गुर, वोट चुराने के,
तंगी की हालत में, कभी नोट कही शराब लगता है !

जमीर मरने, मारने का सिलसिला सुरु क्या हुआ,
अब शहर में, धन और सत्ता ही शबाब  लगता है !