ये बात थी, हर रात की।
कुछ दिल की , कुछ जज्बात की।
शोर थे बस, यादों में लपेटे हुये ,
कुछ पुरानी यादें और मैं, जीवन को समेटे हुए।
चमक थी बस सिक्को की, किस्सों में कोलाहल था,
खुशिया बंद थी बोतलों में, जो बस अल्कोहल था।
दफ्तर बंद होते ही, कुछ यादें जेहन से लिपट जाती है।
थकान की किस्ते, रात होते ही बाहों में ले, सो जाती है।
"नींद का सूरज" भी, दोपहर में ढलता है।
इस "शहर" और "ख्वाब" से पूछा तो जाना, जीवन ऐसे ही चलता है।