Wednesday, July 17, 2013

फैन नहीं कूलर बने।

दोस्तों जैसा की आप लोग जानते है, भारत एक उपदेश और बकैत प्रधान देश है।

अब आते है भारतीय युवाओ की तरफ, जो की देश की आन है बान है शान,  और युवा नेता की तरफ जो बेईमान है । हमारे देश में युवा नेता वो होता है जो ४० की उम्र पार कर गया हो। ऐसे नेता खानदानी हाकिम की तरह होते है। बाप दादा गल्ले पर बैठे होते है, बेटा लोगो से मोल भाव करता है, चमचे तारीफ करने में जुटे होते है।
भारतीय युवा दो तरह के होते है,  एक फैन प्रधान और दूसरा बैन प्रधान ।

फैन प्रधान युवा किसी न किसी के फैन होते है, चाहे वो  शारुख, अमिताभ, गाँधी, मोदी, सलमान, सचिन , धोनी   इत्यादी । और इन फैन पर भारतीय राजनीती का साफ़ असर देखने को मिलता है। ये जिनका अनुसरण ( फॉलो ) करते है अगर उनसे कोई गलती हो जाती है तो, नेता सफाई दे या ना दे, ये उससे बड़ी  गलती उसके अपोजिट वाले में निकालते है, और सफाई देने के बाद हल्का हल्का महसूस करते है।

बैन प्रधान प्रजाति ऐसी होती है, राजनीती के बारे में, फिल्मो के बारे में, क्रिकेट के बारे में, कुछ भी पूछ लो... एक ही  शब्द इनके मुह से निकलता है , सब बीके हुए है , पैसो के लिए कुछ भी कर सकते है, ये  नहीं होना चाहिए , वो नहीं होना चाहिए । यार अब कुछ नहीं हो सकता । प्रवचन बहुत निकालते है । एक शब्द बस पूछ लो आपने अबतक क्या किया ? परेशानी और खीझे हुए शब्दों में निकलत है, हम इसमें इंटरेस्टेड नहीं है या दूसरा जवाब होता है हम कर भी क्या सकते है, जिसे करना है वो तो कुछ कर नहीं रहा ।

ट्रैफिक सिग्नल पर पकडे जाने वाले रो गिडगिडा का एक नोट देकर आगे निकालते है, कुछ दिन तक पुलिस वाले को गाली देते रहते है,  धीरे धीरे भूल जाते है इन्हें मौका मिलता है तो फिर वैसे ही दोहराते है। कभी बोतल खुलता है चार दोस्त बैठते है तो ये सिद्ध करने में लग जाते है सबसे " बड़ा " वाला कौन है ।

मुख्य बात ये है कि, यहाँ मुद्दे के साथ कोई नहीं जीता। यहाँ गारंटी नहीं, वारंटी के साथ जीते है। और रिपेयर होती रहती सरकार इस बात का भरोषा देती रहती है कि नया "पार्ट" जो है उसमे कोई प्रॉब्लम नहीं है । आश्वस्त लोग फिर से पुराना राग सुनने को मिलता है । फैन प्रजाति के लोग दलबदलू न कहलाने के डर से सफाई का पोंछा दुसरे के सर पर लगते रहते है ।  यहां नेता अपने वादे की गारंटी नहीं,  वारंटी के साथ आता है अगर एक इलेक्शन में फेल हो जाता है तो उसी वादे के साथ अगले इलेक्शन में आता है और इस तरह से वादे रिपेयर होते रहते हैं वह वारंटी में चल रहे होते हैं

लेकिन फैन समाज को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता वह दलबदलू , पिछलग्गू  ना कहलाए इसके लिए वह दूसरे को उससे बड़ा चोर बता देते हैं,  एक उदाहरण के लिए मान लेता हूं आने वाले समय में अगर अन्ना  हजारे , किरण बेदी , केजरीवाल या मोदी के हाथ में सत्ता आती है इनके समर्थक इनके गलतियों पर पोछा मारने के लिए या तो पिछली सरकारों की दुहाई देंगे  या तो दूसरों को बेवकूफ बता देंगे या यह पूछेंगे तब कहां थे .

दिक्कत होगा कि आने वाले समय में एक ऐसा भी माहौल बनेगा जिसमें आने वाले सारे बुनियादी मुद्दे जैसे स्कूलों का है, अस्पतालों का है, सफाई का है। उस पर बात करना बंद कर देंगे। ये किसी बड़ी से बड़ी आपदा को भी संभाल सकते है। लेकिन.....मुझे डर  है ये मुद्दे खो जायेंगे।

आज की राजनीतिक स्थिति देखकर मुझे यह लगता है कि जैसे यह सरकार बदलेगी आने वाले सरकारों से अगर सवाल पूछोगे तो तुम्हें उपद्रवी भी घोषित किया जा सकता है की भी कहा जा सकता है कि तुमने किसी से पैसे लेकर सवाल पूछे या तुम चाहते नहीं हो कि देश में शांति हो, या यह भी हो सकता है कि कि कुछ लोग देश के पंडित बन जाए या देश के ठेकेदार बन जाए और कैसे रहना है क्या करना है उसका नियम तय करना शुरू कर देंगे और उसके विपरीत गए तो तुम उपद्रवी का  तमगा दे देंगे .

यह भी तो हो सकता है कि सारे लोग अब जागरूक हो गए हो और आने वाले सरकारों से ऐसे ही सवाल पूछते रहें ऐसे ही आंदोलन करते रहें ताकि सरकारी जगी रहे है. कई बार तो मुझे यह भी डर लगता है कि आज के समय में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग अपना दिमाग एक राजनीतिक पार्टी के यहां बटाई पर रख देंगे और राजनेता या राजनीतिक पार्टी जो भी बोलेंगे उसके हां में हां मिलाते रहेंगे कुछ भी हो सकता है.

आज पिछले २ - ३ सालो से मीडिया जिस तरह से सत्ता और सरकार से सवाल पूछ  रहा है, अगर ऐसे ही पूछता रहा तो शायद देश नहीं भटकेगा।  लेकिन कभी कभी ऐसा लगता है की ये मीडिया नए सत्ता धारी का चरण बंदन में बिजी हो नहीं हो जायेगा ?

एक अपील है, देश जिस तरह से उबल रहा है, सिर्फ फैन बनने से काम नहीं चलने वाला, किसी व्यक्ति से बढ़कर एक मुद्दा होता है। ठंढे दिमाग से सोचिये देश की गारंटी कौन ले सकता है। देश उबल रहा है सिर्फ फैन बनने से काम नहीं चलेगा,

"सडको पर आओ थोड़ी और अच्छी हवा मिलेगी" - सरकारों से सवाल रुके नहीं चाहिए

धन्यवाद








 















Tuesday, July 16, 2013

मेरे सपनो का गाँव - घर

खपरैल का घर, एक आँगन में तुलसी और ध्वजा।
ऐसा  मेरा  घर हो सजा, ऐसा  मेरा  घर हो सजा।

हर सावन में बारिस की बुँदे आँगन में दे दस्तक।
खेत खलिहान और राम नाम में झुके मस्तक।

बागो में भरी दोपहरी, कोयल संग कूक लगाऊ।
बावरा  होकर, अनसुने से गीत गाँउ।

गोरु बछरू, गौरैया, सुबह सुबह जगाये।
आधुनिकता से दूर रहू, कुत्ते दरवाजे पे बंध न पाए।

खेल पुराने बागो वाले, खेल, कुकहू कू मै चिल्लाऊ ।
कभी कब्बडी या चिक्का में, अपनी फुर्ती-दम दिखलाऊ।

सुबह सुबह जब निकलू घर,  राम राम से मिले सलाम।
मंदिर की घंटी सुनूँ, और मस्जिद से हर पहर कलाम ।

एक दुआ मांगता हूँ भगवन से, एक ऐसा वर देना।
कभी फुर्सत मिले तो, मेरे सपनो का गाँव - घर देना ।

Wednesday, July 3, 2013

बिहार गठबंधन : एक नजर

जब था गठबंधन,
तू  भी भला  मै भला,
गांठ खुली तो पता चला,
सिर फुटौवल चाल, तू भी चला मै भी चला!

कुर्सी घिसके या डुले,
जा दुश्मन से एक मिला,
धोखा दे अब जनता को,
बन बैठे, तू भी बला मै भी बला!


राजनीति का खेल है भैया,
चिल - कौवे के बड़े बिरादर,
वोट की खातिर, हंस की चाल,
तू भी चला मै भी चला!


लूट तंत्र या घूस तंत्र,
सब में राज हमारा चला!
हिस्सेदार बराबर के बन,
तू भी फूला मै भी फला!