Saturday, April 27, 2013

शनिवार की शाम

हर सुबह, हाथ में टिफ़िन लिए,
आदमी दफ्तर को बढ़ता है!
जिम्मेवारिया और कर्ज,
समय बढ़ते, सूरज सा चढ़ता है!

बच्चे की बढ़ी फीस भी ,
हर माह, थोडा जेब काटता है!
ओवरटाइम कर के भी, आदमी,
अब स्कूलों में  बाटता है !

रिश्तेदारों के तानो से,
थोडा सा डर लगता है!
नून रोटी भी चलता रहे,
ओवरटाइम खूब करे, दफ्तर घर  लगता है !

हर हफ्ते में एक दिन,
आदमी थोडा सा खुश होता है!
बड़ी जिंदगी में बस  एक दिन,
कम सा महसूस होता है !

शनिवार की शाम,
जीवन की  आपाधापी है!
एक छुट्टी मिलती है ,
जिम्मेवारिया ज्यादा है ये नाकाफी है!

दफ्तर से घर को,
भागता है, आदमी पहाड़ सा बस देखकर,
हांकता है चालक भी,
उसे "हाड" सा बस देखकर!

कुछ करते, खूब बड़ी बड़ी बाते,
आदमी के बारे में, हाथो में भरकर जाम!
वो आदमी खड़ा सड़क पर,
ढूंढ़ता बस को, ये है उसकी शनिवार की शाम!

Thursday, April 25, 2013

फिर भी मेरा देश महान

गरिंदगी के आलम ये है,  छुट्टे घूम रहे सैतान,
फिर में मेरा देश महान, फिर भी मेरा देश महान !

हिंदी इतनी सुन्दर भाषा,
 है ये मेरे देश की आशा,
हम अंग्रेजी में देते पहचान,
फिर भी मेरा देश महान !२!

मजदूरी कर भूख में सोता,
महल बना तेरा वो, दुःख में रोता,
सबको है इस चौड़ी खाई की पहचान!
फिर भी मेरा देश महान !२!

जहाँ पानी-पानी कर जनता रोये,
वही खेल की खातिर, जमीं को धोये!
फिर भी नेता देते "पेशाबी बयान "
फिर भी मेरा देश महान !२!

पाई पाई जोड़, हम "कर" देते,
महीनो की कमाई, देशहित में भर देते,
फिर आते कई घोटालो के नाम,
देखो यहाँ के नेताओ के ईमान..
फिर भी मेरा देश महान !२!

ब्लॉक हो या नगर निगम की दुकान,
बिना घूस के ना हो काम,
हर सरकारी दफ्तर बदनाम,
फिर भी मेरा देश महान !२!

पोस्टर, टिका, और अन्धो की अंधभक्ति से,
थोडा पहुच, थोड़ी पैसो को शक्ति से,
पोंगा  पंडित बनाते भागवान,
फिर भी मेरा देश महान !२!


छोटे आँखों वाले, आँख दिखाए,
कभी आँख दिखाए पाकिस्तान,
अपने ही घर में सुनते,
हम चाइनीज़ फरमान,
फिर भी मेरा देश महान !२!


                       Continue....... 



Friday, April 19, 2013

मेरी पतंग

पतंगे अब  उंचाइयो से , थोड़ी सहम सी गयी है!
डर लग रहा है, उन्हें बादलो से टकराने का !

टूट न जाए डोर कही , थोडा डर भी है, पर,
एक तमन्ना भी है इनकी , बिन डोर हवाओ में लहराने का!

पंखो के जीव, आँख दिखा, आगे बढ़ गए, इसका थोडा गम रहा,
पर ख़ुशी है, बिना पंखो के आसमान में आने का !

अब हवाएं, तेज न हो, थोडा डर भी है उखड जाने का,
थोडा एहसान भी है इनका, इन उंचाइयो तक लाने का!

एक डोर की गुलामी है,  थोडा अफ़सोस है इसका,
पर ये डोर ही है रास्ता, दुनिया को नयी उंचाइयो से दिखाने का!

बाजी लगती है मजबूत डोर की,  डर भी रहता है,
खुशी भी होती,
फिर जमीं पर आकर, किसी और की मुस्कराहट बन जाने का!

Wednesday, April 10, 2013

खयालो  को दिल में छुपाकर रखो यारो, अब दर्द देखकर भी लोगो को हँसी आती बहुत है!

हो सके तो नजरो को छुपा कर रखना, नजरे भी दिल की बाते बताती बहुत है!

हकीकत तो यह भी है, कामयाबियाँ छुपा लो, ये दोस्तों को दुश्मन बनाती बहुत है !

सब सोचते है, वो तेरे करीब बहुत है, यह बात भी दुरिया बढाती बहुत है!

किसी अपने से दूर रहकर, सन्नाटे को सुनना, ये बीती कहानियाँ, सुनाती बहुत है!

कभी नाटक ख़तम हो तो दुनिया देखना, ये नयी नयी दुनिया दिखाती बहुत है !

मजा जिंदगी का दर्द में ही था, कमबख्त खुशियाँ भी रिझाती बहुत है !

सरीफ बनकर दीखते रहना बाजारों में, सराफत साथ निभाती बहुत है !

समझदार बन लोगो को मत समझाना, ये खुद, सबको समझाती बहुत है!

टूटना मत कभी मुसीबतों में,  ये जिंदगी भी आजमाती बहुत है !

Sunday, April 7, 2013

तू मेरा प्यार है - एक गीत

तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

है भरोसा मुझे मेरे प्यार पर, भी,
थोड़ी जरुरत है तुझे मनाने का!

तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

दिल में छुपी एक बात है,
अब दिल नहीं करता उसे छुपाने का!
कैसे मै इजहार करू....
रूठ न जाओ, तुम कही,
तरीका नहीं आता मुझे मनाने का !

तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

जान तुझे मै दे न सकता,
बस ख्वाहिश है, तेरे संग जिन्दगी बिताने का!
एक हां की बस जरुरत है,
ये वक़्त नहीं मेरा प्यार आजमाने का!

 तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

Saturday, April 6, 2013

देश के हालात

देशभक्ति का नया पैमाना ये है,
अब देश सेवा, भी  बिना गद्दी के नहीं होता!
जनता के सेवको से पूछना,
कोई काम बिना हड्डी के नहीं होता!

दागी भरे है संसद के भीतर, क्यों?
हर मुल्क इतना कीचड़ नहीं ढोता!
मुद्दे बनते है, वोटो के खातिर, नहीं तो..
यहाँ नक्सल ग्राम और बीहड़ नहीं होता!

सब सेवक बन आते है, लेकिन,
इनकी  सेवा में इमान नहीं होता,
लुट चुके सोने की चिड़िया, नहीं तो,
इसकी पहचान, धूल सामान नहीं होता!

दो दल में बट चुके है लोग अब,
देश की अखंडता का पहचान नहीं होता!
ये न बाटते वोटो की खातिर तो,
हर आदमी  , मजहबी इन्सान नहीं होता !

Monday, April 1, 2013

खयालो  की जहान से,
थोड़े ख्वाब बुनकर आया हूँ!
बड़े जतन से संभालकर,
अंधेरो से, उजाला चुनकर लाया हूँ!

शहर वाले जाग चुके थे,
उसकी आवाज सुनकर आया हूँ !
अब देश थोड़ा बदल जायेगा,
ये सोचकर इठलाया हूँ !

आज हिम्मत की कई नदिया,
हर दिल से खिंच कर लाया हूँ!
अब हर दिल में, उत्साह जागेगा,
उस रण को सींच कर आया हूँ !

कुछ इस दल के थे, कुछ उसके,
आज सबको एक "मुद्दे" पर लाया हूँ !
लुट चुके थे, उनके शहर वाले,
अब उन्ही के हक दिलाने आया हूँ !