Sunday, November 27, 2011

Ek Intezar...!!!!

इस शहर में हर तरफ खामोसी का साया है,
मेरे जेहन में अजीब एक ख्याल आया है ,

सारा जग सो रहा है , फिर भी ,
मुझे नींद अबतक क्यों न आया है ,

एक वहम है मेरे जेहन में ,
रात के इस पहर में चाँद अबतक क्यों न आया है ,

ये पल क्यों नहीं बीत रहा है ,
ये इन्तेजार का इन्तहा क्यों आया है ,

खग बसेरे लौट चुके है ,
उनके कदम की आहट अबतक क्यों न आया है

मृग जोड़े की पदचाप सुनकर,
इस " पागल " को अपना प्यार याद आया है ,

सोचकर हसी आयी, क्यों कर रहा हु इन्तेजार,
शायद उसको, उसका किया वादा ही याद न आया है ,

लिख दू कुछ इस इन्तेजार के नाम ,
बस यही अफ़सोस को जाहिर करने का ख्याल आया है,

Jindagi...!!!

हम तो है जिन्दा, फिर क्यों सिख रहे है जीना,
नशा जिन्दगी का बहुत बड़ा है, फिर क्यों छोड़ रहे है पीना.!!

जिंदगी की बोझ , बढ़ रही है पाप तले,
यहाँ, हर बेटा पलता नहीं अपने ही बाप तले..!

दूर जा रहे है लक्ष्य से, लक्ष्य को पाने में,
हम दुसरो सा क्यों जी रहे है अपने ही ज़माने में ..!!

अपनी न भावना रही, न ही संग रह रहा प्यार,
हम दुसरो सा बन रहे, न बदल रहा संसार..!!

बैठे है जिस दल पर , क्यों काट रहे हो उस पेड़ को,
मानव पशु बन गए है , जैसे झुण्ड हो भेड़ के..!!