अख़बार कुछ लिखते है, अपने अपने नाम से ,
चल आज किस्सा एक सुनते है, इस नादान से।
नेता खेल रहे हैं, अपनी पारी, धर्म और ईमान से,
ढोंगी बड़ा रहा है खुद को, अल्लाह और भगवान से।
कमजोर दे रहे थे गालिया, क्यों लड़ बैठे पहवान से।
सब अपने झुण्ड में मस्त थे, ग़ुम थे सब अपनी पहचान से।
खुद से परेशान देखा था सब को, सब खफा थे भगवान से।
क्यों इतने "खुदा" बनाये, चल पूछते है इंसान से।
चल आज किस्सा एक सुनते है, इस नादान से।
नेता खेल रहे हैं, अपनी पारी, धर्म और ईमान से,
ढोंगी बड़ा रहा है खुद को, अल्लाह और भगवान से।
कमजोर दे रहे थे गालिया, क्यों लड़ बैठे पहवान से।
सब अपने झुण्ड में मस्त थे, ग़ुम थे सब अपनी पहचान से।
खुद से परेशान देखा था सब को, सब खफा थे भगवान से।
क्यों इतने "खुदा" बनाये, चल पूछते है इंसान से।