Saturday, March 28, 2015

सुबह सुबह

खुली आँख जो सुबह सुबह।
खामोशी थी, सिलवटे थी, पर तेरा नजारा न था।

यादें थी , कुछ बातें भी थी,
पर जगाने का वो खूबसूरत, तेरा इशारा न था।

हर सुबह जंग सी छिड़ती है इस दुनिया में।
तू रहती थी तो, कभी हारा न था।

महफ़िल में होकर भी तनहा सा हूँ,
शायद ! तुझसे मिलकर, दूर रहना गवारा न था।