Saturday, October 26, 2013

आम आदमी

आज कुछ सुनता  हूँ ,
कुछ  लिखता हूँ ,
कुछ कहने का अधिकार मिला ,
उन अधिकारों से चीखता हूँ।

सुनता है  कौन मेरी ,
जरुरत बस देखते है लोग।
सब चल रहा है, चलते रहने दो,
आँखे खुली है, पर है न जागने का रोग।

जेब पर डांका जब  पड़े,
खिज़ कर, खरी खोटी से काम चलाते है,
नून प्याज़ महंगा सब ,
बस रोटी से काम चलते है।

बड़े बड़ो और धनियों की ,
सब सुने हज़ार बार है।
पाँच में बदलो या ना बदलो ,
यही बस मितला है, आम आदमी की सरकार है।

पाँच साल का पर्व जब आया ,
मेला लगा था , वादे मिल रहे थे वोट से,
कभी गुमसुम कभी जयजयकार लगा,
मजमा देख सोचता, सरकार चल रही नोट से।

सोचता हूँ , यही नियम है, चलता है,
थोडा समय दे मै  भी वहा से चलता रहा।
"आम  आदमी " था और हूँ,
पर नेताओ के भाषण  में देश बदलता रहा।

Saturday, September 28, 2013

भगत सिंह जी की शुभ जयंती पर
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हर दिन सूरज आसमान में दीखता है,
आज एक सूरज भारत में आया था।
सोये हुए हर प्राणी में ,
एक क्रांति अंगार जलाया था।

क्या पूजूं मै राम कृशन को ,
क्यों अल्लाह को ढुंढू मस्जिद में।
जब देश प्रेम है पूजा मेरी ,
तुम ही भगवन हो मेरे जिद में।

गुलाम न रहे देश हमारा ,
एक ही उनकी ख्वाहिश थी,
आज खुसी से जश्न मनालो ,
वो शुभ दिन सितम्बर अठाईस थी।

जय भारत , जय भगत सिंह

Monday, September 2, 2013

जय किसान

झील मिलाहट तारो का देख,
आसमान की चादर में सोता है,
जय किसान कहने वालो, गौर से देखो,
एक किसान का दिल कैसे रोता है।

जा "इश्क" कबतक लिखता मै तुझपर,
बहुत बीमार मिलेंगे, तुझपर लिखने वाले,
थोडा  कलम रूकती है उस बंजर पर,
नहीं मिलते जिन्हें कोई देखने वाले।

परदेश आया एक मजदूर रोता है,
हर शाम सहम कर सोता है,
वक़्त का क्या भरोसा, कल रोटी मिले न मिले,
हर शाम पेट काट, सपने संजोता है।

वादों का पर्व आता हर पाँच साल पर,
अब हर वादा, दर्द चुभोता है,
एक मजदूर मानुष, खुद पर शासन के खातिर,
कभी भेंडिया, कभी शेर चुन.. रोता है।

Wednesday, July 17, 2013

फैन नहीं कूलर बने।

दोस्तों जैसा की आप लोग जानते है, भारत एक उपदेश और बकैत प्रधान देश है।

अब आते है भारतीय युवाओ की तरफ, जो की देश की आन है बान है शान,  और युवा नेता की तरफ जो बेईमान है । हमारे देश में युवा नेता वो होता है जो ४० की उम्र पार कर गया हो। ऐसे नेता खानदानी हाकिम की तरह होते है। बाप दादा गल्ले पर बैठे होते है, बेटा लोगो से मोल भाव करता है, चमचे तारीफ करने में जुटे होते है।
भारतीय युवा दो तरह के होते है,  एक फैन प्रधान और दूसरा बैन प्रधान ।

फैन प्रधान युवा किसी न किसी के फैन होते है, चाहे वो  शारुख, अमिताभ, गाँधी, मोदी, सलमान, सचिन , धोनी   इत्यादी । और इन फैन पर भारतीय राजनीती का साफ़ असर देखने को मिलता है। ये जिनका अनुसरण ( फॉलो ) करते है अगर उनसे कोई गलती हो जाती है तो, नेता सफाई दे या ना दे, ये उससे बड़ी  गलती उसके अपोजिट वाले में निकालते है, और सफाई देने के बाद हल्का हल्का महसूस करते है।

बैन प्रधान प्रजाति ऐसी होती है, राजनीती के बारे में, फिल्मो के बारे में, क्रिकेट के बारे में, कुछ भी पूछ लो... एक ही  शब्द इनके मुह से निकलता है , सब बीके हुए है , पैसो के लिए कुछ भी कर सकते है, ये  नहीं होना चाहिए , वो नहीं होना चाहिए । यार अब कुछ नहीं हो सकता । प्रवचन बहुत निकालते है । एक शब्द बस पूछ लो आपने अबतक क्या किया ? परेशानी और खीझे हुए शब्दों में निकलत है, हम इसमें इंटरेस्टेड नहीं है या दूसरा जवाब होता है हम कर भी क्या सकते है, जिसे करना है वो तो कुछ कर नहीं रहा ।

ट्रैफिक सिग्नल पर पकडे जाने वाले रो गिडगिडा का एक नोट देकर आगे निकालते है, कुछ दिन तक पुलिस वाले को गाली देते रहते है,  धीरे धीरे भूल जाते है इन्हें मौका मिलता है तो फिर वैसे ही दोहराते है। कभी बोतल खुलता है चार दोस्त बैठते है तो ये सिद्ध करने में लग जाते है सबसे " बड़ा " वाला कौन है ।

मुख्य बात ये है कि, यहाँ मुद्दे के साथ कोई नहीं जीता। यहाँ गारंटी नहीं, वारंटी के साथ जीते है। और रिपेयर होती रहती सरकार इस बात का भरोषा देती रहती है कि नया "पार्ट" जो है उसमे कोई प्रॉब्लम नहीं है । आश्वस्त लोग फिर से पुराना राग सुनने को मिलता है । फैन प्रजाति के लोग दलबदलू न कहलाने के डर से सफाई का पोंछा दुसरे के सर पर लगते रहते है ।  यहां नेता अपने वादे की गारंटी नहीं,  वारंटी के साथ आता है अगर एक इलेक्शन में फेल हो जाता है तो उसी वादे के साथ अगले इलेक्शन में आता है और इस तरह से वादे रिपेयर होते रहते हैं वह वारंटी में चल रहे होते हैं

लेकिन फैन समाज को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता वह दलबदलू , पिछलग्गू  ना कहलाए इसके लिए वह दूसरे को उससे बड़ा चोर बता देते हैं,  एक उदाहरण के लिए मान लेता हूं आने वाले समय में अगर अन्ना  हजारे , किरण बेदी , केजरीवाल या मोदी के हाथ में सत्ता आती है इनके समर्थक इनके गलतियों पर पोछा मारने के लिए या तो पिछली सरकारों की दुहाई देंगे  या तो दूसरों को बेवकूफ बता देंगे या यह पूछेंगे तब कहां थे .

दिक्कत होगा कि आने वाले समय में एक ऐसा भी माहौल बनेगा जिसमें आने वाले सारे बुनियादी मुद्दे जैसे स्कूलों का है, अस्पतालों का है, सफाई का है। उस पर बात करना बंद कर देंगे। ये किसी बड़ी से बड़ी आपदा को भी संभाल सकते है। लेकिन.....मुझे डर  है ये मुद्दे खो जायेंगे।

आज की राजनीतिक स्थिति देखकर मुझे यह लगता है कि जैसे यह सरकार बदलेगी आने वाले सरकारों से अगर सवाल पूछोगे तो तुम्हें उपद्रवी भी घोषित किया जा सकता है की भी कहा जा सकता है कि तुमने किसी से पैसे लेकर सवाल पूछे या तुम चाहते नहीं हो कि देश में शांति हो, या यह भी हो सकता है कि कि कुछ लोग देश के पंडित बन जाए या देश के ठेकेदार बन जाए और कैसे रहना है क्या करना है उसका नियम तय करना शुरू कर देंगे और उसके विपरीत गए तो तुम उपद्रवी का  तमगा दे देंगे .

यह भी तो हो सकता है कि सारे लोग अब जागरूक हो गए हो और आने वाले सरकारों से ऐसे ही सवाल पूछते रहें ऐसे ही आंदोलन करते रहें ताकि सरकारी जगी रहे है. कई बार तो मुझे यह भी डर लगता है कि आज के समय में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग अपना दिमाग एक राजनीतिक पार्टी के यहां बटाई पर रख देंगे और राजनेता या राजनीतिक पार्टी जो भी बोलेंगे उसके हां में हां मिलाते रहेंगे कुछ भी हो सकता है.

आज पिछले २ - ३ सालो से मीडिया जिस तरह से सत्ता और सरकार से सवाल पूछ  रहा है, अगर ऐसे ही पूछता रहा तो शायद देश नहीं भटकेगा।  लेकिन कभी कभी ऐसा लगता है की ये मीडिया नए सत्ता धारी का चरण बंदन में बिजी हो नहीं हो जायेगा ?

एक अपील है, देश जिस तरह से उबल रहा है, सिर्फ फैन बनने से काम नहीं चलने वाला, किसी व्यक्ति से बढ़कर एक मुद्दा होता है। ठंढे दिमाग से सोचिये देश की गारंटी कौन ले सकता है। देश उबल रहा है सिर्फ फैन बनने से काम नहीं चलेगा,

"सडको पर आओ थोड़ी और अच्छी हवा मिलेगी" - सरकारों से सवाल रुके नहीं चाहिए

धन्यवाद








 















Tuesday, July 16, 2013

मेरे सपनो का गाँव - घर

खपरैल का घर, एक आँगन में तुलसी और ध्वजा।
ऐसा  मेरा  घर हो सजा, ऐसा  मेरा  घर हो सजा।

हर सावन में बारिस की बुँदे आँगन में दे दस्तक।
खेत खलिहान और राम नाम में झुके मस्तक।

बागो में भरी दोपहरी, कोयल संग कूक लगाऊ।
बावरा  होकर, अनसुने से गीत गाँउ।

गोरु बछरू, गौरैया, सुबह सुबह जगाये।
आधुनिकता से दूर रहू, कुत्ते दरवाजे पे बंध न पाए।

खेल पुराने बागो वाले, खेल, कुकहू कू मै चिल्लाऊ ।
कभी कब्बडी या चिक्का में, अपनी फुर्ती-दम दिखलाऊ।

सुबह सुबह जब निकलू घर,  राम राम से मिले सलाम।
मंदिर की घंटी सुनूँ, और मस्जिद से हर पहर कलाम ।

एक दुआ मांगता हूँ भगवन से, एक ऐसा वर देना।
कभी फुर्सत मिले तो, मेरे सपनो का गाँव - घर देना ।

Wednesday, July 3, 2013

बिहार गठबंधन : एक नजर

जब था गठबंधन,
तू  भी भला  मै भला,
गांठ खुली तो पता चला,
सिर फुटौवल चाल, तू भी चला मै भी चला!

कुर्सी घिसके या डुले,
जा दुश्मन से एक मिला,
धोखा दे अब जनता को,
बन बैठे, तू भी बला मै भी बला!


राजनीति का खेल है भैया,
चिल - कौवे के बड़े बिरादर,
वोट की खातिर, हंस की चाल,
तू भी चला मै भी चला!


लूट तंत्र या घूस तंत्र,
सब में राज हमारा चला!
हिस्सेदार बराबर के बन,
तू भी फूला मै भी फला!




Thursday, May 9, 2013

थोड़ी चर्चा

एक चुनाव के रिजल्ट आया, जिस पार्टी का बहुमत हुआ, वो ऐसे खुश हो रहे है जैसे इनके सरे पाप धुल गए हो! जिनकी हार हुई, इनके भी जुबान तलवार बन नैतिकता और लोकतंत्र कि दुहाई दे रहे है! इस चुनाव को लोग भ्रष्टाचार के तराजू पर तौल के देख रहे थे, और परिणाम पहले ही घोषित कर चुके थे, लेकिन असली परिणाम कुछ और हुआ!
    समर्थक लोग तरह-तरह के बयान देकर दिल को तस्सली दे रही! भ्रष्टाचार पर चार लाइन लोगो को बोलना और सुन्ना अच्छा लगता है, और वही दूसरा वर्ग है जिनको पकाऊ लगता है! हालत ये है कि, 65 साल से जो  कछुआ रूपी विकाश और घोटाले हम सुन रहे है, लोग सोचते है, किसी को भी चुन, वो लुट कर  ही ले जायेगा! बस मुखौटा थोडा अच्छा रहेगा और "ब्रांडेड" रहेगा तो कुछ और ही बात है!
 एक वक्ता समाचार के हीरो को बता रहे थे, सामाजिक नैतिकता का पतन हो गया है, इसीलिए ऐसा हो रहा है! स्कूल में दाखिला, कॉलेज में डोनेशन, सरकारी नौकरी में घूश देकर जो लोग जी रहे, अगर ऐसे हालत पैदा न किया जाये, तो क्या ये समस्या हो सकती है?
सुरुआत देखते है थोडा,  कर्मचारी १०० में से १० चुराता है, उसका साहब १००० में से १००, छोटे नेता जी १०००० में से १०००,  बड़े नेता १००००० में से १००००,  सिलसिला बढ़ता जाता है, जो इस रूपये को बाँट रहा होता है, १०० करोड़ मेरे से १० करोड़ चुराता है! कर्मचारी जोर जोर से चिल्लाते हुए बोलता है, १० करोड़ कर घोटाला !!!
ये काम हर वर्ग का होता है और चुनाव आने पर इसका जमकर इस्तेमाल करते है, छोटे लोग मुद्दे को तो बड़े लोग नोट का!  जो इसमें सामिल नहीं होते वो या तो इन्हें कोसते है या फिर आँख मूंदकर देश को गाली देकर निकल लेते है! गुस्से का इस्तेमाल भी अपने ही घरवालो पर करते है, और फिर अपने "क्रिकेट के फेवरेट टीम" की तरह अगली पारी का इन्तेजार करती, सत्ता पक्ष को कोशती हुई ५ साल गुजारती है!
एक बात ये भूल जाते है कि हम जिसे समर्थन कर रहे है उसे सुधार दे! अपनी गलती छुपाने के लिए दुसरो कि गलतियों का ढाल बना लेता है! बस.... एक नया खेल सुरु होता है, तू तू मै मै का.... अपनी पार्टी जिंदाबाद, तेरी पार्टी मुर्दाबाद! हर ५ साल में यही होता है, आगे भी होगा! जय हिन्द !

Wednesday, May 1, 2013

हर रोज गुनाहों का  परत दर परत खुलता है!
फिर भी, भाषणों से इनके, रोज दाग धुलता है!

रोटी रोटी चिल्लाता जो, उनको क्या पता,
पेट भरा इन्सान हर सुबह, पुराने राग भूलता है !

हक़ की खातिर उतरता, जो आदमी, सडको पर,
कभी बर्षा की धार, कभी सूरज का आग भूलता है !


हर गली में मिल जाते, बड़े कागज पर, दीवारों से लगे,
चमचई की आदत है ,सड़क से गुजरने वाला इन्हें, "जनाब" बोलता है!

कभी हालत देखना "सूबे" और इनके "घर" की,
इन्हें चुनने वाला , देश को ही  ख़राब बोलता है !


शातिर चोर है, जानते है गुर, वोट चुराने के,
तंगी की हालत में, कभी नोट कही शराब लगता है !

जमीर मरने, मारने का सिलसिला सुरु क्या हुआ,
अब शहर में, धन और सत्ता ही शबाब  लगता है !

Saturday, April 27, 2013

शनिवार की शाम

हर सुबह, हाथ में टिफ़िन लिए,
आदमी दफ्तर को बढ़ता है!
जिम्मेवारिया और कर्ज,
समय बढ़ते, सूरज सा चढ़ता है!

बच्चे की बढ़ी फीस भी ,
हर माह, थोडा जेब काटता है!
ओवरटाइम कर के भी, आदमी,
अब स्कूलों में  बाटता है !

रिश्तेदारों के तानो से,
थोडा सा डर लगता है!
नून रोटी भी चलता रहे,
ओवरटाइम खूब करे, दफ्तर घर  लगता है !

हर हफ्ते में एक दिन,
आदमी थोडा सा खुश होता है!
बड़ी जिंदगी में बस  एक दिन,
कम सा महसूस होता है !

शनिवार की शाम,
जीवन की  आपाधापी है!
एक छुट्टी मिलती है ,
जिम्मेवारिया ज्यादा है ये नाकाफी है!

दफ्तर से घर को,
भागता है, आदमी पहाड़ सा बस देखकर,
हांकता है चालक भी,
उसे "हाड" सा बस देखकर!

कुछ करते, खूब बड़ी बड़ी बाते,
आदमी के बारे में, हाथो में भरकर जाम!
वो आदमी खड़ा सड़क पर,
ढूंढ़ता बस को, ये है उसकी शनिवार की शाम!

Thursday, April 25, 2013

फिर भी मेरा देश महान

गरिंदगी के आलम ये है,  छुट्टे घूम रहे सैतान,
फिर में मेरा देश महान, फिर भी मेरा देश महान !

हिंदी इतनी सुन्दर भाषा,
 है ये मेरे देश की आशा,
हम अंग्रेजी में देते पहचान,
फिर भी मेरा देश महान !२!

मजदूरी कर भूख में सोता,
महल बना तेरा वो, दुःख में रोता,
सबको है इस चौड़ी खाई की पहचान!
फिर भी मेरा देश महान !२!

जहाँ पानी-पानी कर जनता रोये,
वही खेल की खातिर, जमीं को धोये!
फिर भी नेता देते "पेशाबी बयान "
फिर भी मेरा देश महान !२!

पाई पाई जोड़, हम "कर" देते,
महीनो की कमाई, देशहित में भर देते,
फिर आते कई घोटालो के नाम,
देखो यहाँ के नेताओ के ईमान..
फिर भी मेरा देश महान !२!

ब्लॉक हो या नगर निगम की दुकान,
बिना घूस के ना हो काम,
हर सरकारी दफ्तर बदनाम,
फिर भी मेरा देश महान !२!

पोस्टर, टिका, और अन्धो की अंधभक्ति से,
थोडा पहुच, थोड़ी पैसो को शक्ति से,
पोंगा  पंडित बनाते भागवान,
फिर भी मेरा देश महान !२!


छोटे आँखों वाले, आँख दिखाए,
कभी आँख दिखाए पाकिस्तान,
अपने ही घर में सुनते,
हम चाइनीज़ फरमान,
फिर भी मेरा देश महान !२!


                       Continue....... 



Friday, April 19, 2013

मेरी पतंग

पतंगे अब  उंचाइयो से , थोड़ी सहम सी गयी है!
डर लग रहा है, उन्हें बादलो से टकराने का !

टूट न जाए डोर कही , थोडा डर भी है, पर,
एक तमन्ना भी है इनकी , बिन डोर हवाओ में लहराने का!

पंखो के जीव, आँख दिखा, आगे बढ़ गए, इसका थोडा गम रहा,
पर ख़ुशी है, बिना पंखो के आसमान में आने का !

अब हवाएं, तेज न हो, थोडा डर भी है उखड जाने का,
थोडा एहसान भी है इनका, इन उंचाइयो तक लाने का!

एक डोर की गुलामी है,  थोडा अफ़सोस है इसका,
पर ये डोर ही है रास्ता, दुनिया को नयी उंचाइयो से दिखाने का!

बाजी लगती है मजबूत डोर की,  डर भी रहता है,
खुशी भी होती,
फिर जमीं पर आकर, किसी और की मुस्कराहट बन जाने का!

Wednesday, April 10, 2013

खयालो  को दिल में छुपाकर रखो यारो, अब दर्द देखकर भी लोगो को हँसी आती बहुत है!

हो सके तो नजरो को छुपा कर रखना, नजरे भी दिल की बाते बताती बहुत है!

हकीकत तो यह भी है, कामयाबियाँ छुपा लो, ये दोस्तों को दुश्मन बनाती बहुत है !

सब सोचते है, वो तेरे करीब बहुत है, यह बात भी दुरिया बढाती बहुत है!

किसी अपने से दूर रहकर, सन्नाटे को सुनना, ये बीती कहानियाँ, सुनाती बहुत है!

कभी नाटक ख़तम हो तो दुनिया देखना, ये नयी नयी दुनिया दिखाती बहुत है !

मजा जिंदगी का दर्द में ही था, कमबख्त खुशियाँ भी रिझाती बहुत है !

सरीफ बनकर दीखते रहना बाजारों में, सराफत साथ निभाती बहुत है !

समझदार बन लोगो को मत समझाना, ये खुद, सबको समझाती बहुत है!

टूटना मत कभी मुसीबतों में,  ये जिंदगी भी आजमाती बहुत है !

Sunday, April 7, 2013

तू मेरा प्यार है - एक गीत

तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

है भरोसा मुझे मेरे प्यार पर, भी,
थोड़ी जरुरत है तुझे मनाने का!

तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

दिल में छुपी एक बात है,
अब दिल नहीं करता उसे छुपाने का!
कैसे मै इजहार करू....
रूठ न जाओ, तुम कही,
तरीका नहीं आता मुझे मनाने का !

तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

जान तुझे मै दे न सकता,
बस ख्वाहिश है, तेरे संग जिन्दगी बिताने का!
एक हां की बस जरुरत है,
ये वक़्त नहीं मेरा प्यार आजमाने का!

 तू मेरा प्यार है,
तू मेरा प्यार है!
एक जुनूँ  है तुझे पाने का!

Saturday, April 6, 2013

देश के हालात

देशभक्ति का नया पैमाना ये है,
अब देश सेवा, भी  बिना गद्दी के नहीं होता!
जनता के सेवको से पूछना,
कोई काम बिना हड्डी के नहीं होता!

दागी भरे है संसद के भीतर, क्यों?
हर मुल्क इतना कीचड़ नहीं ढोता!
मुद्दे बनते है, वोटो के खातिर, नहीं तो..
यहाँ नक्सल ग्राम और बीहड़ नहीं होता!

सब सेवक बन आते है, लेकिन,
इनकी  सेवा में इमान नहीं होता,
लुट चुके सोने की चिड़िया, नहीं तो,
इसकी पहचान, धूल सामान नहीं होता!

दो दल में बट चुके है लोग अब,
देश की अखंडता का पहचान नहीं होता!
ये न बाटते वोटो की खातिर तो,
हर आदमी  , मजहबी इन्सान नहीं होता !

Monday, April 1, 2013

खयालो  की जहान से,
थोड़े ख्वाब बुनकर आया हूँ!
बड़े जतन से संभालकर,
अंधेरो से, उजाला चुनकर लाया हूँ!

शहर वाले जाग चुके थे,
उसकी आवाज सुनकर आया हूँ !
अब देश थोड़ा बदल जायेगा,
ये सोचकर इठलाया हूँ !

आज हिम्मत की कई नदिया,
हर दिल से खिंच कर लाया हूँ!
अब हर दिल में, उत्साह जागेगा,
उस रण को सींच कर आया हूँ !

कुछ इस दल के थे, कुछ उसके,
आज सबको एक "मुद्दे" पर लाया हूँ !
लुट चुके थे, उनके शहर वाले,
अब उन्ही के हक दिलाने आया हूँ !

Saturday, March 30, 2013

गेहू & गुलाब

भूखो को पेट भरना,
अब ख्वाब बन गया है!
जीने का मतलब है खून देना,
हर वक़्त खून देने का हिसाब बन गया है!

अब दुनिया को चेहरा दिखाने का,
जरिया भी "खिजाब" बन गया है!
जिन्हें वासिन्दा होना था जेल का,
वो शहर का नवाब बन गया है!

जो तिलिस्म के आका थे,
वह... अब आफ़ताब बन गया है !
यह तो भेडो का झुण्ड था,
यहाँ के मालिक, "भेड़िया जनाब" बन गया है!

मुद्दे की बातो पर लड़कर राजा बनते,
पर अब गरीब होना अजाब बन है!
हालात बदल गया शहर का
अब मुद्दा गेहू बनाम गुलाब बन गया है!

Saturday, March 23, 2013

इन्टरनेट लव

कभी facebook  सा चाहूँ तुमको,
या   twitter  सा प्यार करू!
थोडा तो समझा दे   सजनी,
कैसे तुझसे प्यार करू!

कभी yahoo करके चिल्लाऊ,
या चुप होकर blogger का संसार भरू!
कभी orkut  सा गुम हो जाऊ,
या songspk  साइट्स सा  झंकार भरू!

थोडा तो समझा दे   सजनी,
कैसे तुझसे प्यार करू!!!!

कभी apna circle सा जुड़ता जाऊ,
या justdial सा व्यापार करू,
Wikki  पढ़ के पगलाऊ या,
fickr पे फोटो शेयर, दो चार करू !

gmail  का मेल बन,... छुप कर आऊ,
या,   दिल google  सा सदाबहार करू !
e - bay से गिफ्ट दिलवाऊ,
या quiker  सा प्रचार करू.!!

थोडा तो समझा दे   सजनी,
कैसे तुझसे प्यार करू!!!!

Friday, March 22, 2013

CBI ब्रम्हास्त्र

कितने किये हो पाप पुण्य, सब लेख नए लिखवायेंगे!
हमें समर्थन दे दो भईया, नहीं  तो सीबीआई लगायेंगे!

तेरे सारे कर्म कुकर्म, हम  जनता को बतलायेगे!
नयी नयी जांच बिठाकर, तेरे बुरे दिन दिखलायेंगे !

हमें समर्थन दे दो भईया, नहीं तो CBI लगायेंगे !!!!

घोटाले हो या कला धन, हम सब तेरे हम बचायेंगे !
फंस भी जाओगे कही तो, बिरोधी की चाल बतायेगे !

जब तक दोगे तुम समर्थन,  तुमको भी मंत्री बनायेगे !
जो भी लूटा धन होगा, सही हिस्से में बटायेंगे!

तू मेरी करुणा को देख, हम माया भी तुझे दिखायेंगे !
सीबीआई का डर देख, सब मुलायम पड़ जायेंगे !

हमें समर्थन दे दो भईया, नहीं तो CBI लगायेंगे !!!!

Wednesday, March 20, 2013

हर रोज होता है यहाँ ड्रामा, तो ये ड्रामा होता क्यों है!
लोकतंत्र का मंदिर कहते है, तो मंदिर में हंगामा होता क्यों है !

बोलने का हक मिला सबको है, फिर इसके लिए पैमाना क्यों है!
बिरोध भी करते है, फिर साथ रहने का उनका हलफ़नामा क्यों है!

मेहनत हम करते है, फिर उसपर इतना जुरमाना क्यों है !
जीत-हार उसके लिए है, फिर ये तंत्र जुआखाना क्यों है !

जरूरते हर साल बदल जाती है, फिर 5 सालो का सफरनामा क्यों है !
उनको सत्ता देते  है, फिर हम झेलते इतना हरजाना क्यों है !

हर रोज होता है यहाँ ड्रामा, तो ये ड्रामा होता क्यों है!
लोकतंत्र का मंदिर कहते है, तो मंदिर में हंगामा होता क्यों है !

Tuesday, March 19, 2013

कूल डुड & Yo Yo Boys.!!

लड़के कान छिदा रहे,
लड़की पहन रही पजामा है,
चाँद भी कंफ्यूज है,
वो किसका महबूब किसका मामा है!

मटक मटक के चलते देखा,
हर श्रींगार सेट होकर आये है!
पटर पटर  भाषा सुन लागे,
इंलिश में  ट्रांसलेट होकर आये है!

जींस थोड़ी नीची करके,
चड्ढी का ब्रांड दिखाते फिरते!
सभ्य समाज देख माथा पिटते,
सबको फैसन सिखाते फिरते!

अजब गजब परिधान इनके,
समझ न आये क्या पहना है!
जब तक ये बतला  न देते,
लगता है भाई नहीं ये बहना है!

बाल  कलर लगे  जैसे,
कोई पान थूककर गया है,
दाढ़ी मुछ देखकर लागे,
दढ़ियल बकरे के भैया है!

मातृ भक्ति और देशप्रेम सब,
त्योहारों पर इनको भाते है!
थोड़े अजीब से दीखते है,
पर  कूल डुड कहलाते है!

Monday, March 18, 2013

बदल जायेगा देख कुछ सालो में,
ये इन्तेजार तो हर बारी करता हूँ!

थोड़े पैसे बचा बचा कर,
ख्वाब - ए - फरारी करता हूँ!

पर महंगाई के दौर  देखकर,
खवाबो में भी घुड़सवारी करता हूँ!

चारा कोई लुट न ले, इसीलिए,
खुद खेती बारी करता हूँ !

बदल जायेगा देख कुछ सालो में,
ये इन्तेजार तो हर बारी करता हूँ!

बची रही इज्जत शहर में,
थोड़े धनी होने की बीमारी करता हूँ!

कुछ योजना का लाभ मिले, इसीलिए,
मंत्री तंत्री की बन्दंवारी करता हूँ !

चलो टैक्स देने का समय आ गया,
उसे भरने की तैयारी करता हूँ !

बदल जायेगा देख कुछ सालो में,
ये इन्तेजार तो हर बारी करता हूँ!

Tuesday, March 12, 2013

अब तेरी अदाँए भी मोह न पाती मुझे,
न जाने क्या जहर था तेरी बेवफाई में!

कभी सोचता था, खवाबो में दूर न जाऊ,
अब सोचता हूँ, जिन्दगी है तुझसे जुदाई में!

भरोसा था इतना, तेरे वादों की जरुरत न थी,
हर बार पर कसम खाया, तेरी दिल लगाईं में !

सुना था इश्क दर्द का समंदर है,
वो खड़े मिली किनारे पर, जब डूब रहा था गहराई में!

अब सहम जाता हूँ, "इश्क" का नाम सुनकर,
वो कहती है, कोई और ढूढ़ मेरे दिल की भरपाई में!

माटी के लोग

माटी के हो लोग अब माटी होए जाये!
राजा और राजा होए, लुट लुट के खाय!

लोग वा अब समझदार भइल,
केहू के बात सहल न जाए!
बदल रहल बा लोग अब,
काहे जुगवा बदलल कहलाये!

माटी के हो लोग अब माटी होए जाये!..२!!

जवन मेहनत से ना मिलल,
उ धन रखे छुपाये!
करिया लोग के सोच भइल,
उ धन भी काला कहलाये!

मंत्री तंत्री लुटे, तंत्री लुटे,
फिर भी प्रजातंत्र कहलाये!
हमार देश महान ह,
चलत रह इहे गीत गुनगुनाये !

माटी के हो लोग अब माटी होए जाये!..२!!

Thursday, March 7, 2013

आधुनिक लोकतंत्र


गलत करो कुछ भी, इलज़ाम औरो पर लगाते है,
ताड़ में ही रहते है, हर मुद्दा, चुनावी  कैसे बन  पाते है!

जब जब आये चुनावी पर्व, रंगे सियार बन जाते है,
जीत मिले जब इनको, जतना को भूल, चमचो से घिरे पाते है !

५ साल का ठेका लेकर, जनता का सेवक बतलाते है,
दिखा ठेंगा जनता को ये, हरे-भरे बन जाते है!

लोकतंत्र का नारा लेकर, वंश तंत्र चलाते है !
चाटुकार भी कम न इनके, जनता पे धाक दिखाते है!

सत्ता पक्ष हो या बिपक्ष, एक दूजे पे, भ्रष्ट का इलज़ाम लगाते है,
जो भी आया शासन करने, सब लुट कर खाते है !

अब हालत  ऐसी है...

एक तरफ बाघ खड़ा है,एक तरफ है घाघ,
खुद पे शासन करवाने को, एक को चुनिए जनाब!

Friday, March 1, 2013

मै कौन था..

हर दिल में एक चिंगारी  बनकर जागता हूँ !
रुकते कदम रुक न जाये, हर उस कदम पर भागता हूँ !

गहन निद्रा का वक़्त नहीं, जग जा तू सुरुआत समझ कर,
गुरु मंत्र मै क्या दूँ  तुझको, चल दे बस जज्बात समझकर !

ये एक सुरुआत समझ कर, थोड़ी हिम्मत दिखला देना,
सब जग जायेंगे, बस मंत्र "इंकलाब" का बतला देना !

मुझे मत जानना तुम,मुझसे न पूछना कि, मै कौन था!
परिचय कब थी दुनिया मांगी, जब मांगी तब मै मौन था!

बदल जायेगा सब कुछ जब, तब खबर के कोने में पड़ा मिलूँगा,
पहचान लेगीं दुनिया जब, चौराहे पे बड़े पत्थर पे जड़ा मिलूँगा!

कल फिर तेरे शहर में आऊंगा, कभी तो तू जागते मिलेगा!
कुछ जवान के जुबाँ पे इंकलाब होगा, कभी तो उनके पीछे भागते मिलेगा!

बजट पार्ट 2

गोरी तेरा प्यार महंगा हो गया,
सिगरेट और सिगार महंगा हो गया!
क्या क्या चीजे गिनवाऊ,
अब तो चलाना भी, घरबार, महंगा हो गया !

खड़े होकर नुक्कड़ पर,पट्रोल जलाकर
वो करना तेरा इन्तेजार, महंगा हो गया!
अब तो AC  होटल में खाना,
और पिने का जार महंगा हो गया !

हम सोचे थे हम गरीब है,
हर बार सोचते है चलो एकबार ही महंगा हो गया!
हर चीजो के किम्मत बढ़ गए,
देखते देखते अब संसार महंगा हो गया!

गोरी तेरा प्यार महंगा हो गया!
गोरी तेरा प्यार महंगा हो गया!

Tuesday, February 26, 2013

रेल बजट

रेल बजट, रेल बजट, कैसा है ये खेल बजट,
 जब जब आता है संसद में,निकालता सबका "तेल" बजट!

मंत्री जी आये थे, अंग्रेजी में कुछ बडबडा दिए,
कुछ समझ में आया, कुछ यहाँ गड़बड़ा दिए!

वायदे आपने जोर जोर से चिल्ला कर बता रहे थे,
जब काटे जेब जनता के, धीरे धीरे फुसफुसा रहे थे!

बिपक्ष के नेता, हर बात में शोर सुनाई दिया था,
मुझे कब मौका मिलेगा, इसपर जोर दिखायी दिया था!


अब तो हर बात में, बिपक्ष का शोर सुनायी देता है,
किस पर भरोसा करे....
खादी ओढ़े कुछ लोगो में, चोर दिखायी देता है !

Monday, February 25, 2013

मेरा न्यूज़ पेपर....

आज सुबह सुबह अकबर देखा,
कागजो पर लिखा मुद्दे हजार देखा!

ऊपर ऊपर मोटे मोटे लेख छपे थे,
कुछ मानवता की बाते बोझ से दबे थे!

नेतावो का भी बयान बड़े अक्षरों में छाया था!
ऐसा लगा था, कोई नेता मुंह से, गोबर करके आया था!

कई फ़िल्मी हस्तियाँ भी सुर्खियों में छाई थी!
किसका क्या चक्कर था या कौन सी लिपस्टिक लगाई थी !

घोटालो  का मुद्दा यहाँ थोडा नरम हो रहा था,
हिरोइन का पोस्टर से, पेपर थोडा गरम हो रहा था!

कही कुत्ता था बाग़ दे रहा, कही नाग शरमाया था!
यहाँ एक  "चुप इन्सान" भी, सुर्खियों में छाया था !

सारे मुद्दे  को एक लाइन में सजाता हूँ!
जो भी नया गीत बनेगा उसको मै सुनाता हूँ !


कही ढोंगी बाबा थे , कही कुछ हेरोइने  मिली,
कभी बाबा थे ऊपर, वही हेरोइने निचे मिली!  ( यहाँ उनके बारे में लिखे लाइनों के बारे में बात हो रही है )

कही डॉलर उछल रहा था,
कही बाजार पिघल रहा था!
कही तेल का भाव बढ़ रहा था,
कही किसी का तेल निकल रहा था!

सच को दिखाते दिखाते, कुछ  सच ही छुप रहा था यहाँ!
जब चुप होना था चिला रहा था , जब बारी आयी, चुप था यहाँ!

ये मेरा अख़बार था....

Wednesday, February 20, 2013

हड़ताल

कल दौड़ता जो शहर था,
आज चाल उसकी मंद है!
लग रहा है ऐसा, आज ,
शहर बंद है, देश बंद है!

कुछ लोग बिरोध कर रहे,
कुछ लोग भरोसेमंद है!
सब मांगों की बाते करते,
थोड़ी राजनितिक भी छंद है!

हर गेट पर ताला जड़ा,
दरवाजे भी आज बुलंद है !
नगद उधार बोलते लोगो की,
बोलती भी आज बंद है !

राह देखता आम आदमी,
सोचता ये क्या द्वन्द है!
पेट कट रहा है उसका,
फिर झुण्ड क्यों चिल्लाती, देश बंद है! देश बंद है!

Tuesday, February 19, 2013

नेता जी आप मत बदलना,
हम कैसे जियेंगे,कैसे खायेंगे,
आपसे अच्छा न मुद्दा होगा,
नए ब्यंग कहा से लायेंगे !

कभी घोटाले करके फंस  जाना,
कभी स्कैंडल में पकड़े जाना!
रिश्वत, फिरौती, कोई केस न तो,
आयकर वालो से तो जकडे जाना !

मीडिया को मुद्दा मिलेगा,
कई नए लेख छप जायेंगे !
आपको को बदनाम कर,
कई लेखक के, चूल्हे तो जल जायंगे!

सुन्दर सुन्दर कई रिपोर्टर,
आपके इर्द गिर्द मडरायेंगी!
रौब बढेगा देश में आपका,
जनता भी घबराएगी !

अगर सुधर गए आप तो,
देश खुश हाल हो जायेगा!
मीडिया हो या आलोचक,
सबका धंधा चौपट हो जायेगा!

कभी न बदलना, प्यारे नेता जी,
फिर अगली बार फिर आपको जिताएंगे !
आप विवादित भांसड़  देना,
हम उसपर नए लेख बनायेंगे !

क्या कर लेगी सोयी जनता,
कभी हाय हाय चिल्लाएगी, तो कभी पुतला ही जलाएगी !
सच कहता हूँ, राजनीति की कसम
उब जाएगी जब ये जनता,
आपके,  मौसेरे भाई को लाएगी !

समझदार लोग

अँधेरे का मुसाफिर हूँ, हर वक़्त संभल कर चलता हूँ!
दुसरे को राह दिखा सकू, हर वक़्त जलता रहता हूँ !

आहट कोई हो तो, थोडा तुम भी संभल जाना!
तुम अजनबी हो इस पथपर, मै तो हु जाना पहचाना!

तस्वीर मेरी तुम, दिल में रखना, लोगो को मत दिखलाना!
खुद संभालना, खुद सीखना, पर लोगो को मत ये समझाना!

खुद बदलकर देखो यारा, तुमको इसकी ही दरकार है!
पत्थर मार के देखो, हर घर में बैठे समझदार है!

Sunday, February 17, 2013

आतंकवादी

न ये हिंदूवादी है, न ये मुस्लिमवादी है !
जात धर्मं ये मत जोड़ो इनको, ये आतंकवादी है!

नेता जी और प्रशासन जी....

नेता जी भी कम नहीं, उन्हें हर बात पे वोट दीखते  है!
प्रशासन के कुछ लोग यहाँ, नोटों पर ही बिकते है !

नेता-नोट के चक्कर में बस आम आदमी ही पिसता है !
तब जागते है ये लोग, जब अपनों के बदन से लहू रिसता है !

धर्मं जात बताकर इनका, मजहब को न बदनाम करो !
नरभक्षी नर बन घूम रहे है ,सोच समझकर पहचान करो !

न ये हिंदूवादी है, न ये मुस्लिमवादी है !
जात धर्मं ये मत जोड़ो इनको, ये आतंकवादी है!

Saturday, February 16, 2013

बचपन मे जाना था , यहाँ सिर्फ इंसान रहते है।
बचपन था वो , यहाँ तो सिर्फ हिंदू और मुसलमान रहते है।

धर्मं बड़ा बताकर, इलज़ाम क्यों दुसरो पर लगाते है!
न गीता ,न ही  कुरान,   लड़ने को सिखलाते है !

दंगे फसाद की कहानी, सुनकर क्यों घबराते है !
"मेरा" गया तो रो दिए, "उनके" गए तो पीठ थपथपाते है !

ये तो ज़ेहन का सवाल था, जवाब कौन बतलायेगा !
पागल होते समझ भी जाते,समझदारो को कौन समझाएगा!

एक ख्वाब था ........
एक मंदिर, एक मस्जिद, एक गिरिजाघर साथ बनाऊंगा!
मुस्लिम, ईसाई, हिन्दू मिलाकर, "मानव" जात बनाऊंगा!

हालातों पे गौर करू तो, अब तो थोडा सा डर लगता है !
राम-रहीम क्यों साथ रहे, हर शहर, नफरत का घर लगता है!

Thursday, February 14, 2013

उसकी खामोश नजर,
कुछ कही ,पर समझ न पाया मै!
क्यों लफ्जो से बात करता,
जब इशारों को समझ न पाया मै!

न जाने क्यों, हर नज़ारे को,
अजीब सा देखती थी !
पत्थर सा था "वह" ,
जिसे सजीव सा देखती थी!

कभी बादलो की छत को,
जी भर के देखती!
कभी पुरुआ हवा से,
बदन को सेकती !

उस नादान को क्या कहता,
वो तो दिल की सुन रही थी!
शायद पिया मिलन की,
एक ख्वाब बुन रही थी!

शाम भी थी ढल चुकी,
रात पड़ाव लगा चुकी थी!
तारो की तैयारी हो रही थी,
चाँदनी दस्तक लगा चुकी थी!

सोच रहा था , सफ़र दूर है,
फिर वक़्त क्यों भाग रहा है!
बहुत कुछ है उसकी नजरो में,
उसे जानने को, एक दिल जाग रहा है!

Saturday, February 9, 2013

आज जेहन में कोई सवाल नहीं,
उदास है ये दिल, दिल में भी कोई ख्याल नहीं!
समय था कुछ करने का, कर न पाया !
अब तक कुछ न कर पाया, इसका मलाल नहीं!

अब आया है वक़्त बदलने का,
रोज थोडा बदल रहा हूँ !
राह-ए-जिन्दगी का बहुत बड़ा है
हर रोज जीवन डगर पर, टहल रहा हूँ !

सब कहते है बदल जाओ,
हम बदल जाये तो क्या, आवाम में भी ये सवाल रखना!
केवल बदले न जुबान यहाँ ,
बदले सबके दिल इसका भी ख्याल रखना !

ये भी एक नशा है ,
हर रोज थोडा बदलने का!
अकेले तो सब चल रहे है ,
अब समय आया है, सबके साथ चलने का!

Sunday, February 3, 2013

!! तेरे शहर के लोग !!

अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!
इतना  भी  तो  बुरा नहीं था ,   मेरे   प्रेम के रोग !

हर हाथ में पत्थर था उनके,
जब था तेरी गलियों से गुजरा !
हर पत्थर पर खून था  लगा,
हर मंजर में था सन्नाटा पसरा !

मेरा किस्मत क्यों लाया,    ये  क्यों हुआ  ये संजोग!
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!

कुसूर क्या था? बस दिल लगाने का,
दिल पर कब किसका बस चला है !
हम तो इश्क को जन्नत समझे ,
तेरे शहर वालो को, क्यों लगती ये बला है !

इतना भी  तो  बुरा  नहीं  था ,    मेरे  प्रेम के रोग !
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!

अब तेरे शहर न लौटूंगा, भले क्यों न तडपाये, तेरे बिरह - बियोग!
मै तो हु सीधा-साधा, न जाने क्यों खौफ खाते, तेरे शहर के लोग !


Friday, February 1, 2013

मेरी कविता कुछ ऐसी है.....

ये निकले जो,  "महफ़िल" से, एक नयी उमंग लाती है,
जो गुजरे, "साज" से एक नयी तरंग लाती है !

मेरी कविता कुछ ऐसी है....

इश्क से निकले तो दर्द, समाज से निकलकर ब्यंग लाती है,
जो कभी गुजरे राम - रहीम के दर से, तो फिर सत्संग लाती है !

मेरी कविता कुछ ऐसी है....

बादलो से गुजरे तो , एक  धनुष सतरंग लाती है!
कभी दिल से गुजरे तो प्यार का एक रंग लाती है !!

मेरी कविता कुछ ऐसी है...........

Monday, January 28, 2013

कभी मुझे सायर मत कहना,
 मै तो एक मुसाफिर हूँ ....
गुनगुनाते सफ़र पर निकला हु !

मेरे अल्फाज़ तेरे दर्द के साथी बनेंगे,
जब जी में आये गुनगुना देना .....!!
राह में और भी मिलेंगे "दर्द के मारे"
उन्हें भी  ये सुना देना ....!!!

कभी मुझे हमसफ़र न समझना,
मै तो एक मुसाफिर हूँ ...
गुनगुनाते सफ़र पर निकला हु !

जब जी चाहे ..
कुछ वक्त हो तो साथ बिता लेना,
आँशु जब भी छलकने लगे,
मुझे सीने से लगा लेना ..!!

कभी मुझे बादल न समझाना..
मै तो एक मुसाफिर हु...
गुनगुनाते सफ़र पर निकला हु!


जब धुप लगेगी में दिल में, पनाह दूंगा,
सर्द में,
कभी तुझे न अपनी छाव में लाऊंगा,
प्यास लगे इसारा करना,
 मद्धम मद्धम बरस जाऊंगा .!!


मै तो एक मुसाफिर हु...
गुनगुनाते सफ़र पर निकला हु!

Yaad !!

ना जाने उसकी "पायल" उसे, मेरी याद दिलाती की नहीं,
मै तो उसके  "बाली" को सिने से लगाकर सोता हु...
ना जाने उसे मेरी याद आती की नहीं..
अब भी  मै, उसे याद कर, पल पल रोता हु ...!!

रिश्ते  वो न जुड़ सके, जो दुनिया के बनाये है,
हर पल " ये " बोझ मन में ढोता हूँ ...!
कैसे समझता मै उसको, उससे बिछड़कर,
ना जगता हूँ , ना सोता हूँ ..!!

चाहा था तुम्हे, अब भी तुझे चाहता हूँ,
जब दूर जाना हो मुझसे, एक बार बस बता के जाना !
क्या पता..कभी दस्तक दे दे तेरे सहर में,
मुलाकात की हसरत है, अपना पता दे के जाना !!

ना मिलना होगा मुझसे तुम्हे ... वो भी मंजूर है,
लफ्जो को बिराम देकर , बस इशारो से जता  देना !
हम कभी न लौटेंगे, तेरे दुनिया में ,
........पर मेरी ख़ता बता देना !!