Tuesday, February 26, 2013

रेल बजट

रेल बजट, रेल बजट, कैसा है ये खेल बजट,
 जब जब आता है संसद में,निकालता सबका "तेल" बजट!

मंत्री जी आये थे, अंग्रेजी में कुछ बडबडा दिए,
कुछ समझ में आया, कुछ यहाँ गड़बड़ा दिए!

वायदे आपने जोर जोर से चिल्ला कर बता रहे थे,
जब काटे जेब जनता के, धीरे धीरे फुसफुसा रहे थे!

बिपक्ष के नेता, हर बात में शोर सुनाई दिया था,
मुझे कब मौका मिलेगा, इसपर जोर दिखायी दिया था!


अब तो हर बात में, बिपक्ष का शोर सुनायी देता है,
किस पर भरोसा करे....
खादी ओढ़े कुछ लोगो में, चोर दिखायी देता है !

Monday, February 25, 2013

मेरा न्यूज़ पेपर....

आज सुबह सुबह अकबर देखा,
कागजो पर लिखा मुद्दे हजार देखा!

ऊपर ऊपर मोटे मोटे लेख छपे थे,
कुछ मानवता की बाते बोझ से दबे थे!

नेतावो का भी बयान बड़े अक्षरों में छाया था!
ऐसा लगा था, कोई नेता मुंह से, गोबर करके आया था!

कई फ़िल्मी हस्तियाँ भी सुर्खियों में छाई थी!
किसका क्या चक्कर था या कौन सी लिपस्टिक लगाई थी !

घोटालो  का मुद्दा यहाँ थोडा नरम हो रहा था,
हिरोइन का पोस्टर से, पेपर थोडा गरम हो रहा था!

कही कुत्ता था बाग़ दे रहा, कही नाग शरमाया था!
यहाँ एक  "चुप इन्सान" भी, सुर्खियों में छाया था !

सारे मुद्दे  को एक लाइन में सजाता हूँ!
जो भी नया गीत बनेगा उसको मै सुनाता हूँ !


कही ढोंगी बाबा थे , कही कुछ हेरोइने  मिली,
कभी बाबा थे ऊपर, वही हेरोइने निचे मिली!  ( यहाँ उनके बारे में लिखे लाइनों के बारे में बात हो रही है )

कही डॉलर उछल रहा था,
कही बाजार पिघल रहा था!
कही तेल का भाव बढ़ रहा था,
कही किसी का तेल निकल रहा था!

सच को दिखाते दिखाते, कुछ  सच ही छुप रहा था यहाँ!
जब चुप होना था चिला रहा था , जब बारी आयी, चुप था यहाँ!

ये मेरा अख़बार था....

Wednesday, February 20, 2013

हड़ताल

कल दौड़ता जो शहर था,
आज चाल उसकी मंद है!
लग रहा है ऐसा, आज ,
शहर बंद है, देश बंद है!

कुछ लोग बिरोध कर रहे,
कुछ लोग भरोसेमंद है!
सब मांगों की बाते करते,
थोड़ी राजनितिक भी छंद है!

हर गेट पर ताला जड़ा,
दरवाजे भी आज बुलंद है !
नगद उधार बोलते लोगो की,
बोलती भी आज बंद है !

राह देखता आम आदमी,
सोचता ये क्या द्वन्द है!
पेट कट रहा है उसका,
फिर झुण्ड क्यों चिल्लाती, देश बंद है! देश बंद है!

Tuesday, February 19, 2013

नेता जी आप मत बदलना,
हम कैसे जियेंगे,कैसे खायेंगे,
आपसे अच्छा न मुद्दा होगा,
नए ब्यंग कहा से लायेंगे !

कभी घोटाले करके फंस  जाना,
कभी स्कैंडल में पकड़े जाना!
रिश्वत, फिरौती, कोई केस न तो,
आयकर वालो से तो जकडे जाना !

मीडिया को मुद्दा मिलेगा,
कई नए लेख छप जायेंगे !
आपको को बदनाम कर,
कई लेखक के, चूल्हे तो जल जायंगे!

सुन्दर सुन्दर कई रिपोर्टर,
आपके इर्द गिर्द मडरायेंगी!
रौब बढेगा देश में आपका,
जनता भी घबराएगी !

अगर सुधर गए आप तो,
देश खुश हाल हो जायेगा!
मीडिया हो या आलोचक,
सबका धंधा चौपट हो जायेगा!

कभी न बदलना, प्यारे नेता जी,
फिर अगली बार फिर आपको जिताएंगे !
आप विवादित भांसड़  देना,
हम उसपर नए लेख बनायेंगे !

क्या कर लेगी सोयी जनता,
कभी हाय हाय चिल्लाएगी, तो कभी पुतला ही जलाएगी !
सच कहता हूँ, राजनीति की कसम
उब जाएगी जब ये जनता,
आपके,  मौसेरे भाई को लाएगी !

समझदार लोग

अँधेरे का मुसाफिर हूँ, हर वक़्त संभल कर चलता हूँ!
दुसरे को राह दिखा सकू, हर वक़्त जलता रहता हूँ !

आहट कोई हो तो, थोडा तुम भी संभल जाना!
तुम अजनबी हो इस पथपर, मै तो हु जाना पहचाना!

तस्वीर मेरी तुम, दिल में रखना, लोगो को मत दिखलाना!
खुद संभालना, खुद सीखना, पर लोगो को मत ये समझाना!

खुद बदलकर देखो यारा, तुमको इसकी ही दरकार है!
पत्थर मार के देखो, हर घर में बैठे समझदार है!

Sunday, February 17, 2013

आतंकवादी

न ये हिंदूवादी है, न ये मुस्लिमवादी है !
जात धर्मं ये मत जोड़ो इनको, ये आतंकवादी है!

नेता जी और प्रशासन जी....

नेता जी भी कम नहीं, उन्हें हर बात पे वोट दीखते  है!
प्रशासन के कुछ लोग यहाँ, नोटों पर ही बिकते है !

नेता-नोट के चक्कर में बस आम आदमी ही पिसता है !
तब जागते है ये लोग, जब अपनों के बदन से लहू रिसता है !

धर्मं जात बताकर इनका, मजहब को न बदनाम करो !
नरभक्षी नर बन घूम रहे है ,सोच समझकर पहचान करो !

न ये हिंदूवादी है, न ये मुस्लिमवादी है !
जात धर्मं ये मत जोड़ो इनको, ये आतंकवादी है!

Saturday, February 16, 2013

बचपन मे जाना था , यहाँ सिर्फ इंसान रहते है।
बचपन था वो , यहाँ तो सिर्फ हिंदू और मुसलमान रहते है।

धर्मं बड़ा बताकर, इलज़ाम क्यों दुसरो पर लगाते है!
न गीता ,न ही  कुरान,   लड़ने को सिखलाते है !

दंगे फसाद की कहानी, सुनकर क्यों घबराते है !
"मेरा" गया तो रो दिए, "उनके" गए तो पीठ थपथपाते है !

ये तो ज़ेहन का सवाल था, जवाब कौन बतलायेगा !
पागल होते समझ भी जाते,समझदारो को कौन समझाएगा!

एक ख्वाब था ........
एक मंदिर, एक मस्जिद, एक गिरिजाघर साथ बनाऊंगा!
मुस्लिम, ईसाई, हिन्दू मिलाकर, "मानव" जात बनाऊंगा!

हालातों पे गौर करू तो, अब तो थोडा सा डर लगता है !
राम-रहीम क्यों साथ रहे, हर शहर, नफरत का घर लगता है!

Thursday, February 14, 2013

उसकी खामोश नजर,
कुछ कही ,पर समझ न पाया मै!
क्यों लफ्जो से बात करता,
जब इशारों को समझ न पाया मै!

न जाने क्यों, हर नज़ारे को,
अजीब सा देखती थी !
पत्थर सा था "वह" ,
जिसे सजीव सा देखती थी!

कभी बादलो की छत को,
जी भर के देखती!
कभी पुरुआ हवा से,
बदन को सेकती !

उस नादान को क्या कहता,
वो तो दिल की सुन रही थी!
शायद पिया मिलन की,
एक ख्वाब बुन रही थी!

शाम भी थी ढल चुकी,
रात पड़ाव लगा चुकी थी!
तारो की तैयारी हो रही थी,
चाँदनी दस्तक लगा चुकी थी!

सोच रहा था , सफ़र दूर है,
फिर वक़्त क्यों भाग रहा है!
बहुत कुछ है उसकी नजरो में,
उसे जानने को, एक दिल जाग रहा है!

Saturday, February 9, 2013

आज जेहन में कोई सवाल नहीं,
उदास है ये दिल, दिल में भी कोई ख्याल नहीं!
समय था कुछ करने का, कर न पाया !
अब तक कुछ न कर पाया, इसका मलाल नहीं!

अब आया है वक़्त बदलने का,
रोज थोडा बदल रहा हूँ !
राह-ए-जिन्दगी का बहुत बड़ा है
हर रोज जीवन डगर पर, टहल रहा हूँ !

सब कहते है बदल जाओ,
हम बदल जाये तो क्या, आवाम में भी ये सवाल रखना!
केवल बदले न जुबान यहाँ ,
बदले सबके दिल इसका भी ख्याल रखना !

ये भी एक नशा है ,
हर रोज थोडा बदलने का!
अकेले तो सब चल रहे है ,
अब समय आया है, सबके साथ चलने का!

Sunday, February 3, 2013

!! तेरे शहर के लोग !!

अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!
इतना  भी  तो  बुरा नहीं था ,   मेरे   प्रेम के रोग !

हर हाथ में पत्थर था उनके,
जब था तेरी गलियों से गुजरा !
हर पत्थर पर खून था  लगा,
हर मंजर में था सन्नाटा पसरा !

मेरा किस्मत क्यों लाया,    ये  क्यों हुआ  ये संजोग!
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!

कुसूर क्या था? बस दिल लगाने का,
दिल पर कब किसका बस चला है !
हम तो इश्क को जन्नत समझे ,
तेरे शहर वालो को, क्यों लगती ये बला है !

इतना भी  तो  बुरा  नहीं  था ,    मेरे  प्रेम के रोग !
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!

अब तेरे शहर न लौटूंगा, भले क्यों न तडपाये, तेरे बिरह - बियोग!
मै तो हु सीधा-साधा, न जाने क्यों खौफ खाते, तेरे शहर के लोग !


Friday, February 1, 2013

मेरी कविता कुछ ऐसी है.....

ये निकले जो,  "महफ़िल" से, एक नयी उमंग लाती है,
जो गुजरे, "साज" से एक नयी तरंग लाती है !

मेरी कविता कुछ ऐसी है....

इश्क से निकले तो दर्द, समाज से निकलकर ब्यंग लाती है,
जो कभी गुजरे राम - रहीम के दर से, तो फिर सत्संग लाती है !

मेरी कविता कुछ ऐसी है....

बादलो से गुजरे तो , एक  धनुष सतरंग लाती है!
कभी दिल से गुजरे तो प्यार का एक रंग लाती है !!

मेरी कविता कुछ ऐसी है...........