सवाल शहर का है..
पर ख्याल है घर का !
किस कूचे से गुजरू
ये कस्मकस है, हर पहर का।
तुम हो खामोश तो बातें कौंन सुनता है,
तरासे हुए कहानियो को, कौन धुनता है !
अकेलेपन का जहर भी अजीब है।
हिसाब रखता है, सुबह शाम दोपहर का।
अच्छा !! समय भी मेरे साथ सफर में था,
ये ख्याल भी, इस कदर में था.... कि ,
मुलाकातों की तारीखे भी तय है ,
बस इंतजार है हमें देखने की, उनके नजर का !
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