हम तो है जिन्दा, फिर क्यों सिख रहे है जीना,
नशा जिन्दगी का बहुत बड़ा है, फिर क्यों छोड़ रहे है पीना.!!
जिंदगी की बोझ , बढ़ रही है पाप तले,
यहाँ, हर बेटा पलता नहीं अपने ही बाप तले..!
दूर जा रहे है लक्ष्य से, लक्ष्य को पाने में,
हम दुसरो सा क्यों जी रहे है अपने ही ज़माने में ..!!
अपनी न भावना रही, न ही संग रह रहा प्यार,
हम दुसरो सा बन रहे, न बदल रहा संसार..!!
बैठे है जिस दल पर , क्यों काट रहे हो उस पेड़ को,
मानव पशु बन गए है , जैसे झुण्ड हो भेड़ के..!!
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