Sunday, November 27, 2011

Ek Intezar...!!!!

इस शहर में हर तरफ खामोसी का साया है,
मेरे जेहन में अजीब एक ख्याल आया है ,

सारा जग सो रहा है , फिर भी ,
मुझे नींद अबतक क्यों न आया है ,

एक वहम है मेरे जेहन में ,
रात के इस पहर में चाँद अबतक क्यों न आया है ,

ये पल क्यों नहीं बीत रहा है ,
ये इन्तेजार का इन्तहा क्यों आया है ,

खग बसेरे लौट चुके है ,
उनके कदम की आहट अबतक क्यों न आया है

मृग जोड़े की पदचाप सुनकर,
इस " पागल " को अपना प्यार याद आया है ,

सोचकर हसी आयी, क्यों कर रहा हु इन्तेजार,
शायद उसको, उसका किया वादा ही याद न आया है ,

लिख दू कुछ इस इन्तेजार के नाम ,
बस यही अफ़सोस को जाहिर करने का ख्याल आया है,

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