खपरैल का घर, एक आँगन में तुलसी और ध्वजा।
ऐसा मेरा घर हो सजा, ऐसा मेरा घर हो सजा।
हर सावन में बारिस की बुँदे आँगन में दे दस्तक।
खेत खलिहान और राम नाम में झुके मस्तक।
बागो में भरी दोपहरी, कोयल संग कूक लगाऊ।
बावरा होकर, अनसुने से गीत गाँउ।
गोरु बछरू, गौरैया, सुबह सुबह जगाये।
आधुनिकता से दूर रहू, कुत्ते दरवाजे पे बंध न पाए।
खेल पुराने बागो वाले, खेल, कुकहू कू मै चिल्लाऊ ।
कभी कब्बडी या चिक्का में, अपनी फुर्ती-दम दिखलाऊ।
सुबह सुबह जब निकलू घर, राम राम से मिले सलाम।
मंदिर की घंटी सुनूँ, और मस्जिद से हर पहर कलाम ।
एक दुआ मांगता हूँ भगवन से, एक ऐसा वर देना।
कभी फुर्सत मिले तो, मेरे सपनो का गाँव - घर देना ।
ऐसा मेरा घर हो सजा, ऐसा मेरा घर हो सजा।
हर सावन में बारिस की बुँदे आँगन में दे दस्तक।
खेत खलिहान और राम नाम में झुके मस्तक।
बागो में भरी दोपहरी, कोयल संग कूक लगाऊ।
बावरा होकर, अनसुने से गीत गाँउ।
गोरु बछरू, गौरैया, सुबह सुबह जगाये।
आधुनिकता से दूर रहू, कुत्ते दरवाजे पे बंध न पाए।
खेल पुराने बागो वाले, खेल, कुकहू कू मै चिल्लाऊ ।
कभी कब्बडी या चिक्का में, अपनी फुर्ती-दम दिखलाऊ।
सुबह सुबह जब निकलू घर, राम राम से मिले सलाम।
मंदिर की घंटी सुनूँ, और मस्जिद से हर पहर कलाम ।
एक दुआ मांगता हूँ भगवन से, एक ऐसा वर देना।
कभी फुर्सत मिले तो, मेरे सपनो का गाँव - घर देना ।
No comments:
Post a Comment