Monday, September 2, 2013

जय किसान

झील मिलाहट तारो का देख,
आसमान की चादर में सोता है,
जय किसान कहने वालो, गौर से देखो,
एक किसान का दिल कैसे रोता है।

जा "इश्क" कबतक लिखता मै तुझपर,
बहुत बीमार मिलेंगे, तुझपर लिखने वाले,
थोडा  कलम रूकती है उस बंजर पर,
नहीं मिलते जिन्हें कोई देखने वाले।

परदेश आया एक मजदूर रोता है,
हर शाम सहम कर सोता है,
वक़्त का क्या भरोसा, कल रोटी मिले न मिले,
हर शाम पेट काट, सपने संजोता है।

वादों का पर्व आता हर पाँच साल पर,
अब हर वादा, दर्द चुभोता है,
एक मजदूर मानुष, खुद पर शासन के खातिर,
कभी भेंडिया, कभी शेर चुन.. रोता है।

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