प्रसिद्ध कवि सुनील जोगी जी की एक रचना है, उसमें कुछ अपनी लाइने जोड़ रहा हूँ। ये उन्ही की है, कविता को आगे बढ़ने की कोशिस है।
तुम जानी मानी रचना सी , मैं ट्विटर का ट्रोल प्रिये।
तुम सधी बाँसुरी सुरीली, मैं फटा हुआ सा ढोल प्रिये।
तुम चतुर चंचल सुन्दर सी, मैं बुड़बक बकलोल प्रिये।
तुम बटर चिकेन सी ललचाती, मैं तरकारी का झोल प्रिये।
तुम शास्त्री जी सी कामकाजी, मै मोदी सा बड़बोल प्रिये।
तुम देशी घी की गगरी हो, मैं ढक्कन का तेल प्रिये।
मुस्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये .
तुम खिली हुई बहारो सी , में जंगल घनघोर प्रिये ,
तुम हसी खिलखिलाती चेहरे सी, मैं भिखमंगे का लोर प्रिये।
तुम म्यूजिक चैनल की गीतों सी, मैं न्यूज चैनल्स का शोर प्रिये।
तुम रहमान की ओरिजिनल कॉपी सी मै प्रीतम सा चोर प्रिये।
तुम बुलेट ट्रेन की रफ़्तार, मैं लोकल पैसेंजर रेल प्रिये।
मुस्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम उन्मुक्त सी छन्दो वाली, मै धारा 66A का एक्जाम्पल हूँ।
तुम बीबीसी की एंकर जैसी, मैं जी न्यूज़ का सैंपल हूँ।
तुम सदा बहार सरकारों वालो, मैं धरने का टेम्पल हूँ।
तुम भरी दोपहरी में ठंढी हवा, मैं धूल उडाता आंधी हूँ।
तुम प्रसिद्द इंदिरा सी जैसी, मैं पोगो देखता राहुल गांधी हूँ।
तुम हीरे की चमचम की, मैं नकली सा चाँदी हूँ।
तुम स्विस देश की जन्नत सी, मैं चाइना की आबादी हूँ।
तुम शोरूम की शोभा हो, मैं फुटपाथ का सेल प्रिये।
मुस्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम जानी मानी रचना सी , मैं ट्विटर का ट्रोल प्रिये।
तुम सधी बाँसुरी सुरीली, मैं फटा हुआ सा ढोल प्रिये।
तुम चतुर चंचल सुन्दर सी, मैं बुड़बक बकलोल प्रिये।
तुम बटर चिकेन सी ललचाती, मैं तरकारी का झोल प्रिये।
तुम शास्त्री जी सी कामकाजी, मै मोदी सा बड़बोल प्रिये।
तुम देशी घी की गगरी हो, मैं ढक्कन का तेल प्रिये।
मुस्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये .
तुम खिली हुई बहारो सी , में जंगल घनघोर प्रिये ,
तुम हसी खिलखिलाती चेहरे सी, मैं भिखमंगे का लोर प्रिये।
तुम म्यूजिक चैनल की गीतों सी, मैं न्यूज चैनल्स का शोर प्रिये।
तुम रहमान की ओरिजिनल कॉपी सी मै प्रीतम सा चोर प्रिये।
तुम बुलेट ट्रेन की रफ़्तार, मैं लोकल पैसेंजर रेल प्रिये।
मुस्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
तुम उन्मुक्त सी छन्दो वाली, मै धारा 66A का एक्जाम्पल हूँ।
तुम बीबीसी की एंकर जैसी, मैं जी न्यूज़ का सैंपल हूँ।
तुम सदा बहार सरकारों वालो, मैं धरने का टेम्पल हूँ।
तुम भरी दोपहरी में ठंढी हवा, मैं धूल उडाता आंधी हूँ।
तुम प्रसिद्द इंदिरा सी जैसी, मैं पोगो देखता राहुल गांधी हूँ।
तुम हीरे की चमचम की, मैं नकली सा चाँदी हूँ।
तुम स्विस देश की जन्नत सी, मैं चाइना की आबादी हूँ।
तुम शोरूम की शोभा हो, मैं फुटपाथ का सेल प्रिये।
मुस्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नहीं है खेल प्रिये।
No comments:
Post a Comment