Sunday, October 18, 2015

सियासत

खुदा से विरोध कर, कुछ सवाल यूँ ही पूछ लिया।
ये सियासत थी, तवायफ सी, फिर इसे क्यों बना दिया।

शहर में दो बदनाम ठिकाने, कहाँ का इन्साफ है?
एक छुपकर हो तो पाप, दूसरे सरेआम सात खून माफ़ है ?

कोठे खुल जाए जिस शहर  में,  बदनाम सा लगता है।
चुनाव में, ये जो नुक्कड़ पर होता, क्यों सही काम सा लगता है।


अकेला हूँ, फिर भी  "खुदा" तेरा विरोध कर, शहर चला जाऊँगा ।
 गर कहनी होगी कुछ बाते "सरकार" से, भीड़ कहाँ से लाऊंगा।

लाख मरता होऊंगा, अपने मजहब अपने देश पर।
पर  उस मरने का सुबूत कहाँ से लाऊंगा।  

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