Sunday, October 6, 2019

मैं कौन हूँ ?


कभी भीड़ से निकल कर कहने दो मुझे कौन हूँ...
हां... सब कह रहे है, मैं सुन रहा हूँ, इसलिए मौन हूँ

ये जो मापते हो, आंकते हो मुझे,
तुम अपने तरक्की के  पैमाने से,
मै कब टूटा हूँ?
किसमत के आजमाने से |

रात  के  भागते  ख्वाबो  में,
खुद  को  नींद  से  जगाता  हूँ |
इस भागमभाग  में   सुबह  हो  जाती  है,
अब ख्वाब  या  नींद  कहाँ  पूरा  कर पता हूँ

एक  जिद्द  करता  हूँ,  इस  शहर  में बस जाने  की,
फिर ...न  जाने  क्यों  मन  करता है, इससे दूर भाग  जाने की |

असमंजस है, किसकी कहानी लिखू , किस की मै बातें सुनु,
सब के किस्से अपने, किसके जैसा ख्वाब बुनु |

ये  जो  काले  घेरे, आँखों  को  घेरे  है,
यही तो में मेरे ख्वाबो के दीप के अँधेरे है।
हर दिन मोटे होते  चश्मे के शीशे,
अब उम्र क और ख्वाब बहुतेरे है।

ख्वाब और जिम्मेदारी कुछ ऐसी है
सोता है शहर तो जागता हूँ |
कुछ.. कश्मकश ऐसी है.. नए ख्वाब बुनता हूँ ...
फिर नए शहर भागता हूँ।

अब हर नये ओहदे और तनख्वाह,
गुलाबी  गुलाल  से   लगते  है। 
जिम्मेदारियों के बोझ तले,
कुछ दिन बाद... होली के बदरंग गाल से लगते है | 

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