Wednesday, March 20, 2013

हर रोज होता है यहाँ ड्रामा, तो ये ड्रामा होता क्यों है!
लोकतंत्र का मंदिर कहते है, तो मंदिर में हंगामा होता क्यों है !

बोलने का हक मिला सबको है, फिर इसके लिए पैमाना क्यों है!
बिरोध भी करते है, फिर साथ रहने का उनका हलफ़नामा क्यों है!

मेहनत हम करते है, फिर उसपर इतना जुरमाना क्यों है !
जीत-हार उसके लिए है, फिर ये तंत्र जुआखाना क्यों है !

जरूरते हर साल बदल जाती है, फिर 5 सालो का सफरनामा क्यों है !
उनको सत्ता देते  है, फिर हम झेलते इतना हरजाना क्यों है !

हर रोज होता है यहाँ ड्रामा, तो ये ड्रामा होता क्यों है!
लोकतंत्र का मंदिर कहते है, तो मंदिर में हंगामा होता क्यों है !

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