Tuesday, March 12, 2013

अब तेरी अदाँए भी मोह न पाती मुझे,
न जाने क्या जहर था तेरी बेवफाई में!

कभी सोचता था, खवाबो में दूर न जाऊ,
अब सोचता हूँ, जिन्दगी है तुझसे जुदाई में!

भरोसा था इतना, तेरे वादों की जरुरत न थी,
हर बार पर कसम खाया, तेरी दिल लगाईं में !

सुना था इश्क दर्द का समंदर है,
वो खड़े मिली किनारे पर, जब डूब रहा था गहराई में!

अब सहम जाता हूँ, "इश्क" का नाम सुनकर,
वो कहती है, कोई और ढूढ़ मेरे दिल की भरपाई में!

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