गलत करो कुछ भी, इलज़ाम औरो पर लगाते है,
ताड़ में ही रहते है, हर मुद्दा, चुनावी कैसे बन पाते है!
जब जब आये चुनावी पर्व, रंगे सियार बन जाते है,
जीत मिले जब इनको, जतना को भूल, चमचो से घिरे पाते है !
५ साल का ठेका लेकर, जनता का सेवक बतलाते है,
दिखा ठेंगा जनता को ये, हरे-भरे बन जाते है!
लोकतंत्र का नारा लेकर, वंश तंत्र चलाते है !
चाटुकार भी कम न इनके, जनता पे धाक दिखाते है!
सत्ता पक्ष हो या बिपक्ष, एक दूजे पे, भ्रष्ट का इलज़ाम लगाते है,
जो भी आया शासन करने, सब लुट कर खाते है !
अब हालत ऐसी है...
एक तरफ बाघ खड़ा है,एक तरफ है घाघ,
खुद पे शासन करवाने को, एक को चुनिए जनाब!
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