Friday, February 1, 2013

मेरी कविता कुछ ऐसी है.....

ये निकले जो,  "महफ़िल" से, एक नयी उमंग लाती है,
जो गुजरे, "साज" से एक नयी तरंग लाती है !

मेरी कविता कुछ ऐसी है....

इश्क से निकले तो दर्द, समाज से निकलकर ब्यंग लाती है,
जो कभी गुजरे राम - रहीम के दर से, तो फिर सत्संग लाती है !

मेरी कविता कुछ ऐसी है....

बादलो से गुजरे तो , एक  धनुष सतरंग लाती है!
कभी दिल से गुजरे तो प्यार का एक रंग लाती है !!

मेरी कविता कुछ ऐसी है...........

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