अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!
इतना भी तो बुरा नहीं था , मेरे प्रेम के रोग !
हर हाथ में पत्थर था उनके,
जब था तेरी गलियों से गुजरा !
हर पत्थर पर खून था लगा,
हर मंजर में था सन्नाटा पसरा !
मेरा किस्मत क्यों लाया, ये क्यों हुआ ये संजोग!
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!
कुसूर क्या था? बस दिल लगाने का,
दिल पर कब किसका बस चला है !
हम तो इश्क को जन्नत समझे ,
तेरे शहर वालो को, क्यों लगती ये बला है !
इतना भी तो बुरा नहीं था , मेरे प्रेम के रोग !
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!
इतना भी तो बुरा नहीं था , मेरे प्रेम के रोग !
हर हाथ में पत्थर था उनके,
जब था तेरी गलियों से गुजरा !
हर पत्थर पर खून था लगा,
हर मंजर में था सन्नाटा पसरा !
मेरा किस्मत क्यों लाया, ये क्यों हुआ ये संजोग!
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!
कुसूर क्या था? बस दिल लगाने का,
दिल पर कब किसका बस चला है !
हम तो इश्क को जन्नत समझे ,
तेरे शहर वालो को, क्यों लगती ये बला है !
इतना भी तो बुरा नहीं था , मेरे प्रेम के रोग !
अब न जाने क्यों ढूंढते है "मुझे", तेरे शहर के लोग!
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