कल दौड़ता जो शहर था,
आज चाल उसकी मंद है!
लग रहा है ऐसा, आज ,
शहर बंद है, देश बंद है!
कुछ लोग बिरोध कर रहे,
कुछ लोग भरोसेमंद है!
सब मांगों की बाते करते,
थोड़ी राजनितिक भी छंद है!
हर गेट पर ताला जड़ा,
दरवाजे भी आज बुलंद है !
नगद उधार बोलते लोगो की,
बोलती भी आज बंद है !
राह देखता आम आदमी,
सोचता ये क्या द्वन्द है!
पेट कट रहा है उसका,
फिर झुण्ड क्यों चिल्लाती, देश बंद है! देश बंद है!
No comments:
Post a Comment