Tuesday, February 19, 2013

समझदार लोग

अँधेरे का मुसाफिर हूँ, हर वक़्त संभल कर चलता हूँ!
दुसरे को राह दिखा सकू, हर वक़्त जलता रहता हूँ !

आहट कोई हो तो, थोडा तुम भी संभल जाना!
तुम अजनबी हो इस पथपर, मै तो हु जाना पहचाना!

तस्वीर मेरी तुम, दिल में रखना, लोगो को मत दिखलाना!
खुद संभालना, खुद सीखना, पर लोगो को मत ये समझाना!

खुद बदलकर देखो यारा, तुमको इसकी ही दरकार है!
पत्थर मार के देखो, हर घर में बैठे समझदार है!

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